राजगीर, 28 दिसमà¥à¤¬à¤° 2019ः राजगीर में मनाठजा रहे गà¥à¤°à¥ नानक देव के 550 वें पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ परà¥à¤µ के अवसर पर आज राजगीर पहà¥à¤‚चे बिहार के कृषि, पशà¥à¤ªà¤¾à¤²à¤¨ व मतà¥à¤¸à¥à¤¯ मंतà¥à¤°à¥€ डॉ पà¥à¤°à¥‡à¤® कà¥à¤®à¤¾à¤° ने पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को शà¥à¤à¤•à¤¾à¤®à¤¨à¤¾à¤à¤‚ देते हà¥à¤ कहा, षà¥à¤—à¥à¤°à¥ नानक देव जी à¤à¤¾à¤°à¤¤ की वैà¤à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ और विशà¥à¤µ-बनà¥à¤§à¥à¤¤à¥à¤µ की समृदà¥à¤§ परंपरा के अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• हैं। इनके वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में दारà¥à¤¶à¤¨à¤¿à¤•, योगी, गृहसà¥à¤¥, धरà¥à¤®à¤¸à¥à¤§à¤¾à¤°à¤•, समाजसà¥à¤§à¤¾à¤°à¤•, कवि, देशà¤à¤•à¥à¤¤ और विशà¥à¤µà¤¬à¤‚धà¥à¤¤à¥à¤µ आदि समसà¥à¤¤ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ हो जाते हैं। उनकी शिकà¥à¤·à¤¾à¤à¤‚ और विचार हमें सदैव मानवता की सेवा के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करती है।षà¥
शà¥à¤°à¥€ कà¥à¤®à¤¾à¤° ने आगे कहा, षà¥à¤¬à¤šà¤ªà¤¨ से पà¥à¤°à¤–र बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के धनी गà¥à¤°à¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤• देव जी ने à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ विकट समय में जनà¥à¤® लिया जब à¤à¤¾à¤°à¤¤ में कोई केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ संगठित शकà¥à¤¤à¤¿ नहीं थी। विदेशी आकà¥à¤°à¤®à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤ देश को लूटने में लगे थे। धरà¥à¤® के नाम पर अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ और करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤‚ड चारों तरफ फैले हà¥à¤ थे। à¤à¤¸à¥‡ समय में गà¥à¤°à¥ नानक देव जी ने अपने विचारों और दरà¥à¤¶à¤¨ से पà¥à¤°à¥‡ समाज को सही मारà¥à¤— दिखा कर à¤à¤•à¤¸à¥‚तà¥à¤° में पिरोया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी सà¥à¤®à¤§à¥à¤° सरल वाणी से जनमानस के हृदय को जीत लिया। लोगों को बेहद सरल à¤à¤¾à¤·à¤¾ में समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ सà¤à¥€ इंसान à¤à¤• दूसरे के à¤à¤¾à¤ˆ है। ईशà¥à¤µà¤° सबके पिता है, फिर à¤à¤• पिता की संतान होने के बावजूद हम ऊंच-नीच कैसे हो सकते है? इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ सà¤à¥€ à¤à¥à¤°à¤¾à¤‚तियों को दूर करने के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उपदेशों को अपने जीवन में अमल किया और चारों ओर धरà¥à¤® का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° कर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¤• आदरà¥à¤¶ बने। सामाजिक सदà¥à¤à¤¾à¤µ की मिसाल कायम की।“
कृषि मंतà¥à¤°à¥€ ने कहा “ यह गà¥à¤°à¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤• देव जी ही थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ऊंच-नीच का à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ मिटाने के लिठलंगर की परंपरा चलाई। जहां कथित अछूत और उचà¥à¤š जाति के लोग à¤à¤• साथ लंगर में बैठकर à¤à¤• पंकà¥à¤¤à¤¿ में à¤à¥‹à¤œà¤¨ करते थे। आज à¤à¥€ सà¤à¥€ गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में यही लंगर परंपरा कायम है। लंगर में बिना किसी à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ के संगत सेवा करती है। इसके अलावा गà¥à¤°à¥ नानक देव ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ सहित अनेक देशों की यातà¥à¤°à¤¾à¤à¤‚ कर धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤•à¤¤à¤¾ के उपदेशों और शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° कर दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को जीवन का नया मारà¥à¤— बताया। हकीकत में गà¥à¤°à¥ नानकदेव जी केवल सिख धरà¥à¤® के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• ही नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ मानव धरà¥à¤® के उतà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• à¤à¥€ थे। वह केवल सिखों के आदि गà¥à¤°à¥ ही नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ संपूरà¥à¤£ मानव समाज के गà¥à¤°à¥ थे। पांच सौ पचास वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ दिठउनके पावन उपदेशों का पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ आज à¤à¥€ मानवता को आलोकित कर रहा है।”