माननीय मंत्री, कृषि विभाग, बिहार डाॅ॰ प्रेम कुमार ने कहा कि बिहार में उद्यानिक फसलों में लीची का एक प्रमुख स्थान है। खासकर मुजफ्फरपुर की लीची का विष्व में एक अलग पहचान है, क्योंकि किसान इसका निर्यात विष्व के कई देषों में करके विदेषी मुद्रा अर्जित करते हैं।
माननीय मंत्री ने कहा कि लीची के फसल को कई प्रकार के कीटों द्वारा नुकसान की सम्भावना बनी रहती है। जब लीची पर कीट का प्रकोप होता है तो किसान भाई-बहन इसके नियंत्रण के लिए व्याकुल हो जाते हैं। अतः इसके नियंत्रण के लिए किसान भाइयों एवं बहनों के लिए आवष्यक है कि लीची में लगने वाले कीटों, उसके प्रकोप से उत्पन्न लक्षण तथा उसके नियंत्रण की पर्याप्त जानकारी हो, ताकि ससमय इसका उपचार कर पाये, तथा अधिक-से-अधिक लीची का उत्पादन ले सके। लीची में लगने वाले प्रमुख कीटों में सबसे प्रमुख कीट फल एवं बीज छेदक होता है। खासकर तैयार फलों में जब इस कीट का प्रकोप होता है, तो किसान भाई-बहन को लीची का उचित बाजार मूल्य नहीं मिल पाता है, जिसके कारण उनको काफी हानि होती है। लीची के फूल आने के समय मादा कीट पŸिायों पर अंडे देती है। पिल्लू नये फलों में घुसकर उसे खा जाते हैं। खासकर वातावरण में अधिक नमी रहने तथा फलों की विलंब से तुड़ाई करने से पिल्लू फल के डंठल के पास छेद कर फल में घुसकर उसके बीज एवं गुद्दे को खा जाता है। इसके फलस्वरूप लीची का फल सँड़ जाता है जिससे इसके उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इस प्रकार लीची का बाजार मूल्य काफी घट जाता है। इसके नियंत्रण के लिए किसान भाईयों एवं बहनों को यह सलाह दी जाती है कि लीची के बाग की समय-समय पर सफाई करें।
डाॅ॰ कुमार ने कहा कि पौधा संरक्षण संभाग के पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों को किसानों से लगातार सम्पर्क में रहने के लिए निदेश दिया गया है। उन्होंने किसान भाइयों एवं बहनों से अपील किया कि लीची फसल में लगने वाले कीट एवं रोग से नियंत्रण हेतु अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्र अथवा पौधा संरक्षण पदाधिकारी से सम्पर्क करें।